Menu
blogid : 25318 postid : 1293238

हमारे अधिकार हमारे कर्त्तव्य

some facts some fiction
some facts some fiction
  • 2 Posts
  • 0 Comment

” मै अपनी गाड़ी साईड से नहीं निकालूँगा ” कार में बैठे बुज़ुर्ग लगभग चिल्लाते हुए बोले ।

किस्सा अगस्त २०११ के आख़री हफ़्ते का है। सारा देश अन्ना हज़ारे के आंदोलन से प्रेरित था । मैं भी अपने ऑफ़ीस के बाहर मानव शृंखला मे एक दिन खडा होकर, अल्प सा ही सही, योगदान देकर खुश हो रहा था । लोकतन्त्र में, सरकार और उसके कर्मचारी जनता के नौकर होते है; अपनी बात सही हो तो समझौता नहीं करना चाहिये; सबको नियम से काम करना और करवाना चाहिये; आदी विचारों से सभी प्रेरित थे ।

मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ होटल से खाना खाकर निकल रहा था । होटल के सामने की सड़क वन-वे थी । एक साधारण अधेड़ से दिखनेवाले सज्जन अपनी कार में बैठे थे । सारा ट्राफिक रूका हुआ था और चारों ओर बस गाडीयो के हॉर्न बज रहे थे ।

उस सज्जन की गाड़ी वन-वे के अनुसार सही दिशा में थी पर सामने की ओर से कई रीक्शाए और छोटी गाडीयॉ एक के पीछे उन सज्जन का रास्ता रोके हुए थी । दोनों ओर गाडीयॉ खड़ी थी और झुँझलाहट में लोग हार्न पे हार्न बजा रहे थे| जैसा की आम तौर पर होता है, गलत साइड से आने वालों ने बाजु से थोड़ी सी जगह बना कर, उस सज्जन से कहा – ” सर आपकी गाड़ी निकाल लीजिए ” लेकिन वे बुज़ुर्ग जोश में आकर कहने लगे – ” आप लोग गलत साइड से घुसें चले आ रहे है, मैं गाड़ी साइड से नहीं निकालूँगा, सब गाड़ियाँ पीछे जाएँगी तभी मै मेरे रास्ते जाऊँगा “. इस तरह बुज़ुर्ग ने पहला राउंड तो जीत लिया ।

city-cars-traffic-lights

यह बात स्पष्ट थी कि यह अन्ना के आंदोलन का असर था । आम आदमी अपनी ताक़त दिखा रहा था। ख़ुद नियम का पालन कर रहा था और बिना डरे भीड़ के सामने खड़ा होकर सबसे नियम का पालन करवा रहा था।

तभी एक – दो रिक्शावाले बाहर निकले और तेजीसे उस बुज़ुर्ग की गाड़ी की तरफ़ गए और उसे समझाने लगे । दोनों ओर से पारा चढ़ने लगा । रिक्शावालों का ग़ुस्सा और हावभाव देखकर हमें लगा कि, बात हाथापाई तक पहुचने के पूर्व हमें उस व्यक्ति को बचाना चाहिए ।

वह व्यक्ति भी कार से बाहर निकला और सब पर गरजकर बोला

” आप लोग ग़लत साइड से आ रहे है, मै साइड से गाड़ी नहीं निकालूँगा, आपको मुझे मारना है तो मारियें, मैं यही खड़ा हूँ ”

उस व्यक्ति के तेवर देखकर रिक्शावाले भी ठंडे पड गए । कोई व्यक्ति हाथापाई पर उतर आए तो उसे कैसे मारना है उन्हें मालूम था पर अगर कोई बुज़ुर्ग हिम्मत से अपनी बात रखे और ख़ुद ही शांति से मार खाने की तैयारी दिखाए तो क्या करना है ये उन्हें नहीं समझा ।

दूसरा राउंड भी बुज़ुर्ग जीत चुका था ।

इतने मे और लोग भी जमा होने लगे । कुछ लोग जो उसके पीछे अपनी गाड़ी लगाकर इंतज़ार कर रहें थे वो भी आए और उसे समझाने लगे । हम लोगों को भी लगाने लगा की उसको अब मामला और नहीं खींचना चाहिए और गाड़ी साइड से निकल लेनी चाहिये । उसने अपनी बात लोगों तक पहुँचा दी थी और वह जीत गया था । दिन भर के थकेहारें लोग बेवजह परेशान हो रहे थे । उसमें उस व्यक्ति के पीछेवाले लोग भी थे जो रॉंग साइड नहीं थे । अब यह लढ़ाई समझदारी की ना होकर, अहंकार की होने लगी थी । इसी बीच वो आदमी अपनी कार के बोनेट से टिककर सभी को इशारों से कह रहा था कि आप लोग आपनी गाड़ियाँ पीछे लो । सभी को देर मेरी वजह से नहीं, आपकी वजह से हो रही है । इसी बीच हल्की बूँदाबांदी भी शुरू हो गई ।

तभी सामने रुके वाहनों के पिछेसे एक आदमी आया जिसे शायद सारा क़िस्सा मालूम नहीं था, बुज़ुर्ग की ओर लपका ओर इसके पहले कोई कुछ बोल पाता, दोनों में झूमाँझटकी शुरू हुई । हम लोग भी बीचबचाव करने लगे ।
उस बुज़ुर्ग को कोई मार तो नहीं पड़ी, लेकिन वह संतुलन बिगड़नेसे रोड के कोने पर जा गिरा । नया आया व्यक्ति हम
सब लोगों के कारण थोड़ा पीछे हुआ लेकिन ग़ुस्से से चिल्लाते हुए कहने लगा

” सबका टाइम क्यों ख़राब कर रहा है, इतनी देर से तुझे जगह दे दी, तो आपने रास्ते क्यों नहीं जाता । १५ गाड़ियाँ खड़ी है तेरे सामने, सब की सब कैसे पीछे जाएगी । तू साइड से निकलता है या नहीं ? ”

ये तेवर देखकर बुज़ुर्ग थोड़ा नरम पड़ा और अपनी कार में जाकर बैठा और साइड से निकल गया । उसके पीछे सभी गाड़ियाँ निकली और जाम ख़त्म हुआ । हम लोग भी पान की दुकान की ओर चल पड़े । पान खाकर हम जब उसी सड़क से वापस जा रहे थे तभी वह बुज़ुर्ग हमें वापस पैदल आता दिखाई दिया और जहाँ उसकी गाड़ी खड़ी थी वहाँ कुछ ढूँढने लगा ।

हमारे जाकर पूछा, तो पता चला की झूमाँझटकी के दौरान उनका कोई कार्ड वहाँ गिर गया था । उन्होंने अपने बेटे को भी फ़ोन करके बुला लिया था । हम लोग भी उनकी मदद करने लगे । कुछ और लोग भी उनकी सहायता के लिए जमा हुए । तभी एक वॉचमैन वहाँ दौड़ता हुआ आया और पूछने लगा
” वहाँ गाड़ी किसने लगाई है ? ”

” वह गाड़ी मेरी है । मेरा कार्ड यहाँ खो गया है इसलिए तुरंत यहाँ आना पड़ा” बुजुर्ग के कहा.

” वह पार्किंग की जगह नहीं है । आपकी गाड़ी बिल्डिंग के सामने लगी है जिससे लोगों को गाड़ी निकालने में परेशानी हो रही है।” वॉचमैन ने शिकायत के स्वर में कहा.

इसपर बुज़ुर्ग का जवाब सुनकर हम लोग आपने रास्ते चलने लगे । जानते है बुज़ुर्ग का जवाब क्या था ?

” लोगों से बोलो यार थोड़ा साइड से निकल ले गाड़ी ” ।

डाकघरों के वो भी क्या वैभवशाली दिन हुआ करते थे । हर समय लोगों का मेला लगा रहता था । बड़ा सा पोस्ट ऑफ़िस होता था । कोई स्टैम्प लेने, कोई पोस्ट कॉर्ड लेने, कोई registry करवाने तो कोई मनी ऑर्डर से पैसे भेजने आया करता था । १५ साल पूर्व मैंने भी अपने कॉलेज के दिनो में, फ़ॉर्म भरने के लिए, पोस्ट ऑफ़िस के कई चक्कर काटे थे। कई बार लाइन में भी लगा। अब e-mail और mobile के ज़माने में पोस्ट ऑफ़िस का हाल देखकर वैसा ही महसूस होता है जैसे
चाचा-चाचीयो,दादा-दादीयो और ढेर सारे बच्चो से भरपूरे परिवार का कुछ सालों बाद देखकर होता है । बच्चें पढ़ाईं कारने या नौकरी करने निकल जाते है और घर ख़ाली-ख़ाली सा हो जाता है।

आज १५ सालों बाद मुझे मेरी N.S.C. भुनाने के लिए डाकघर जाने का काम पड़ा। छोटसा डाकघर, पोस्टमास्टर थोड़े वयस्क जिन्होंने पोस्ट के वैभवशाली दिन शायद देखे होंगे, दो ही काउंटर, जहाँ कुछ लोग registry करवाने या N.S.C. के कार्य के लिए खड़े थे। ना कोई पोस्टकार्ड खरिदनेवाला,ना कोई स्टैम्प खरिदनेवाला। मेरे आगे एक अधेड़ से दिखनेवाले सज्जन खड़े थे, जिनका कार्य कई चक्कर लगाने के बावजूद नही होनेसे नाराज़ लग रहे थे। मैंने भी लाइन में खड़े होकर बोर होने से अच्छा, उनका वार्तालाप सुन मन बहलाने का सोचा। मुद्दा यह था कि साहब की N.S.C. काफ़ी समय पूर्व mature हो चुकी थी लेकिन किसी दूसरे पोस्टॉफ़िस से सम्बंधित होनेसे भुगतान में विलम्ब हो रहा था। आवेदन देकर १०-१५ दिन हो चुके थे, लेकिन कोई जवाब नहीं आ रहा था, और ये साहब बारबार चक्कर काटकर
परेशान हो रहे थे।

” अरे साहब, आप थोड़ा पूछिये ना कब तक भेजेंगे वो ” उस व्यक्ति ने postmaster से पूछा। ” इस हफ़्ते आ जाना चाहिए था, जैसा कि मैंने आपको बताया था। अभी कुछ प्रकरण आए है, पर पता नहीं आपका case उसमें है या नहीं ” मास्टर साहब ने विनम्रता से कहा । मास्टर वैसे सज्जन लग रहे थे । चेहरे पर अनुभवी होने का भाव और भाषा भी सौम्य लग रही थी । ” उन्हें आप फिरसे phone कर के पूछिए ना ” उस व्यक्ति ने कहा । ” वास्तव में मैंने आज सुबह ही संबंधित डाकघर को phone लगाया था तो ज्ञात हुआ की संबंधित कर्मचारी अवकाश पर है ” साहब बोले ।

” छुट्टिपर है तो मैं क्या करूँ ” अब तक उन सज्जन का पारा चढ़ चुका था । ” वो सरकारी आदमी याने हमारा नौकर है और हमारा काम उसे समयपर करना ही चाहिए ”

” आप फ़ालतू की बात मत कीजिए ” मास्टर साहब भी अब नाराज़ हो गए । ” आप सब हमारे नौकर है, हमारे tax देने से ही आप को पगार मिलती है और आप हमें ही चक्कर लगवा रहे है और वह भी हमारे ख़ुद के जमा पैसे निकालने के लिए ? ” विवाद अब बढ़ने लगा था। postmaster चेहरा उतर गया। आम आदमी पहला दौर जीत चुका था, किंतु मुझे postmaster पर तरस आया क्यों की ऑफ़िस staff के सामने एक वरिष्ठ अधिकारी का अपमान हुआ था । इतने में साहब के लिए कोई चाय लेकर आया । कोई कहने लगा की इनका अगले महीने retirement है साथ ही इन्हें दिल की बीमारी भी है ।

अब कार्यालय के एक अन्य कर्मचारी ने सम्बंधित सज्जन से N.S.C. का नम्बर एवम् अन्य जानकारी पूछी और नया आया हुआ गठ्ठा खुलवाया । उस गठ्ठे में संयोगवश उन सज्जन की file सब से ऊपर ही थी । यह जानकर सज्जन का ग़ुस्सा शांत हुआ और उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई की कैसे उन्हें उनका लड़का केवल शनिवार को ही पोस्ट-ऑफ़िस छोड़ सकता है और कैसे वो कई दिन से परेशान हो रहे है । उनके शब्दों में नहीं लेकिन स्वर में पछतावे का भाव था । शायद यह सुनकर कि मास्टरजी retire होनेवाले है , उनकी सहानुभूति जागृत हुई होगी । जो भी हो यह दौर भी उन सज्जन ने जीत लिया था। उनको चेक जो मिलनेवाला था।

उनको चेक देने की औपचारिकताओं के साथ, मास्टर साहब ने अब मेरा काम भी प्रारम्भ कर दिया था। उनका चेक लिखने पूर्व, चेक की रक़म,उसपर मिलनेवाला ब्याज आदि का हिसाब उन्हें समझाया और चेक लिखने लगे । जैसे ही चेकपर नाम लिखना प्रारम्भ किया, उन सज्जन ने कहा की चेक पर नाम के आगे ” कुमार ” शब्द न लिखकर केवल नाम एवम् surname लिखे क्योंकि उनके bank account में नाम वैसा ही है । अब बारी master साहब की थी। उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया और कहा कि वे वही नाम चेक पर लिखेंगे जो एन.एस.सी. पर लिखा है । ” अरे पर साहब फिर में इसे बैंक में जमा कैसे कराऊँगा ” सज्जन का स्वर अब पूरी तरह बदलकर आज्ञा की जगह विनय का हो चुका था । master साहब ने भी अब शांति से कहाँ ” देखिए हम तो सरकारी नौकर है। जो नियम है उसका हमें पालन करना पड़ता है। अतः जो नाम ऐन.एस.सी. पर है उसे ही लिखना पड़ेगा”

इस पर सज्जन कहने लगें ” अरे साहब कौन देखता हैं, सरकारी काम में तो सब चलता है । चलिए मैं फिर से आवेदन करने को तैयार हूँ । कोई और ख़र्चा हो तो बताइए। महीनाभर और भी लग गया तो कोई बात नहीं, पर चेक इसी नाम से बनाइए, फ़ालतू इंकम-टैक्स का चक्कर नहीं चाहिए ।

मेरा काम भी हो चुका था, सो मैं भी वहाँ से चलता बना ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh